गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

उठाया कहां से जाए… की समस्‍या!

प्रेस कांफ्रेंस से निकलते हुए मेरे एक वरिष्‍ठ साथी रिपोर्टर ने अपना चिर-परिचित सवाल उछाला, ‘यार उठाया कहां से जाए …और सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे ?’

यह एक ऐसी व्‍यावहारिक समस्‍या है जिससे प्रिंट मीडिया का अमूमन हर संवाददाता रोज दो-चार होता है। ‘उठाया कहां से जाए’ यानी रिपोर्ट का एंगल क्‍या होगा। जूनियर ही नहीं, बहुत से वरिष्‍ठ साथी भी इस सवाल से परेशान रहते हैं।

दरअसल, यह एंगल ही होता है जो किसी समाचार या सूचना को फ्रंट पेज का आयटम या फिर अंदर का डीसी/सिंगल डब्‍बा बना देता है। मोटे तौर पर कुछ बातें जेहन में रखें तो तथ्‍य और सामग्री समान होने के बावजूद कोई भी रिपोर्ट अन्‍य रिपोर्टरों की उसी विषय पर लिखी रिपोर्ट से बेहतर और प्रभावपूर्ण बन सकती है- 1-सूचना में नया क्‍या है : रिपोर्टर को सूचना मिलने के साथ ही सबसे पहले इस बिन्‍दु पर विचार करना चाहिए कि इसमें नया क्‍या है। इस सवाल का जवाब तलाशने का सिर्फ एक ही तरीका है और वह यह कि रिपोर्टर को मालूम हो कि पुराना क्‍या था। इसलिए रिपोर्टर को संबंधित विषय के बारे में पढ़ते रहना बहुत जरूरी है। बेहतर हो कि वह फील्‍ड पर जाने से पहले अपना होमवर्क पूरा करके जाए।

2-किस पाठक वर्ग के लिए : रिपोर्ट का एंगल तय करने के लिए यह जानना जरूरी है कि जो रिपोर्ट लिखी जानी है वह किस पाठक वर्ग के लिए है। उस पाठक वर्ग की संख्‍या कितनी है और उसके बीच में अखबार का प्रसार कितना है। उसकी जागरूकता का स्‍तर कितना है और उससे संवाद किन शब्‍दों में स्‍थापित किया जा सकता है।

3-सरोकार और उत्‍तरदायित्‍व : पत्रकारिता सरोकारों का पेशा है इसलिए रिपोर्ट कैसी भी हो उसे पाठक को परोसने से पहले यह जरूर ध्‍यान देना चाहिए कि उससे पाठक वर्ग के सरोकारों को कितना पुष्‍ट किया जा रहा है। उपलब्‍ध जानकारी में से क्‍या, कितना और किन शब्‍दों में पाठक के सम्‍मुख प्रस्‍तुत करना है इसका पहला उत्‍तरदायित्‍व रिपोर्टर पर होता है। संवेदनशील मसलों पर रिपोर्ट लिखते समय इसका ध्‍यान विशेष रूप से रखना चाहिए।

4-दृष्टि : कोई भी रिपोर्ट अपने विषय की जानकारी देने के साथ ही रिपोर्टर का व्‍यक्तित्‍व भी पाठक के सामने रखती है। रिपोर्ट में जीवंतता का संचार और गति-निर्माण रिपोर्टर की दृष्टि से होता है। यह वह सर्वप्रमुख बिन्‍दु है जो किसी रिपोर्ट को अन्‍यों से अलग करती है। कोई भी रिपोर्ट तथ्‍यों के आधार पर तो तटस्‍थ हो सकती है लेकिन भावों के आधार पर उसमें तटस्‍थता रखना न तो संभव है और न जरूरी। कहा भी जाता है, ‘सुन्‍दरता दृश्‍य में नहीं दृष्टि में होती है।’ यह सिद्धांत किसी रिपोर्ट को लिखते समय भी लागू होता है। दृष्टि जितनी सकारात्‍मक और सुन्‍दर होगी, रिपोर्ट भी उतनी ही सुस्‍पष्‍ट और सुरुचिपूर्ण होगी। अगर इन बिन्‍दुओं का विचार रिपोर्टर अपनी दैनिक चर्या का हिस्‍सा बना लेंगे तो उन्‍हें कभी साथी रिपोर्टरों से यह नहीं पूछना पड़ेगा-यार, उठाया कहां से जाए !

अजय शुक्‍ला

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