रविवार, 14 अप्रैल 2019

अटल बिना इलेक्‍शन

जिला बने तो 'अटलÓ हों स्मृतियां

बटेश्वर की व्यथा :

-भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष के बिना होगा पहला चुनाव-पूरी ब्रजभूमि में घुली हैं वाजपेयी जी की यादें


यमुना तट पर बटेश्‍वर के मंदिर
आजादी के बाद लोकतंत्र का यह पहला उत्सव है, जिसमें भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी का आभामंडल नहीं होगा। यूं तो अटल जी पूरे देश के थे, दलीय सीमा से इतर जन जन के, लेकिन ब्रज के कण-कण में वह माटी की खुशबू संग समाये हैं। कोई भी चुनाव रहा हो, मथुरा से बटेश्वर तक फैली ब्रज भूमि में उनके ओज भरे भाषण बड़ी संजीदगी और उम्मीद के साथ गाये जाते रहे। अटल जी के भाषण कविता की तरह होते और अपनत्व अलंकार सरीखा। अब यह उम्मीदें मुरझाई हैं। बटेश्वर से उनकी यादें खंगाल कर लाये हैं-अजय शुक्ला

अटल जी के परिजन
आगरा से इटावा जाती टू-लेन मक्खनी सड़क बाह तहसील से बटेश्वर के लिए मुड़ जाती है। सड़क पर कार दौड़ाते हुए अहसास होता है कि हम किसी आदर्श गांव की तरफ जा रहे हैं। फिर, ढलान से उतरते हुए सबसे पहले यमुना घाटी के किनारे बने पांच सौ से हजार साल प्राचीन 101 शिवमंदिरों की श्रंखला दृष्टिगोचर होती है। आबादी इसी के इर्द-गिर्द छितरायी। अब आधे मंदिर ही बचे हैं लेकिन यह विहंगम दृश्य देखकर अटल जी के विराट व्यक्तित्व और विशाल हृदयता की गहरी जड़ों का प्रथम आभास मिलता है।
अटल जी की स्‍मृति में रोपी गई पौध मुरझाई
खंडहर में तब्‍दील अटल जी का पैतृक घर

चुनावी माहौल में भी यहां अभी चुप्पी छायी है। भगवान बटेश्वरनाथ के दर्शन को आसपास के जिलों से कार-बाइक द्वारा पहुंचे दर्शनार्थी हों या प्रसाद व खानपान की दुकानें या फिर इधर-उधर सुस्ताते, गपियाते फुर्सतिए, रोजमर्रा की गपशप में ही व्यस्त नजर आते हैं। हम रुख करते हैं, अटल जी के पैतृक आवास की तरफ जो अब एक टीले पर उगी झाड़-झंखाड़ के रूप में नजर आता है। अटल जी के न रहने पर उनकी स्मृति में यहां एक पौधा रोपा गया था। यह अब मुरझा रहा है, बटेश्वर की उम्मीदों की तरह। रिश्ते में भतीजे रमेश चंद्र वाजपेयी एक मंदिर की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं, यह कुल देवी का मंदिर है।
अटल जी की जन्‍मस्‍थली
अटल जी इसी मकान में (अब टीले पर झाड़) जन्मे और 15 साल की उम्र तक रहे। एक अन्य भतीजे और बटेश्वरनाथ मंदिर के पुजारी राकेश वाजपेयी का मकान भी यहीं है। सामने वाले टीले पर। मंदिर प्रांगण में उनसे बात शुरू हुई तो आसपास कुछ और लोग जुट आये। बोले-अस्थि विसर्जन के बाद यहां कोई बड़ा नेता नहीं आया और न ही उनकी स्मृति संजोने की घोषणाएं पूरी हुईं। राकेश वाजपेयी इस टिप्पणी पर कुछ झेंपते हुए कहते हैं, पीड़ा तो है पर इस बार उनकी यादों के नाम पर वोट पड़ेगा। क्षेत्र में विकास अब भी समस्या है।
सबसे बड़ी समस्या है परिवहन। सड़क तो है लेकिन आजादी के बाद भी आज तक यहां सार्वजनिक परिवहन का कोई साधन नहीं है। बीच में एक निजी बस चलती थी, अब वह भी नहीं चलती। लोगों को कहीं भी जाना हो, जिला मुख्यालय आगरा आना हो तो सिर्फ निजी साधन का ही सहारा है। इसके बावजूद यहां का मतदाता इसी में खुश है कि वह अटल जी के गांव सका है।

4800 वोट हैं बटेश्वर में

बटेश्वर को छोटा-मोटा गांव नहीं। 15 मुहल्लों में बंटा करीब छह हजार की आबादी और 48 सौ वोटर वाला गांव है। तीर्थ पर्यटन क्षेत्र बनने की भरपूर संभावनाएं। आगरा ही नहीं आसपास से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं, लेकिन सार्वजनिक परिवहन न होने के कारण आर्थिक रीढ़ नही बन पाते।

जिला बने तो अटल हो स्मृति


राकेश वाजपेयी कहते हैं कि बटेश्वर में अटल जी की यादें संजोनी हैं तो फतेहाबाद आंशिक को जोड़ते हुए बाह को अटल जिला बना दिया जाए। बटेश्वर को तहसील। यह इस पिछड़े क्षेत्र की बहुत पुरानी मांग है। हाल ही में जिला बनाने का प्रस्ताव तैयार भी हुआ था लेकिन फिर न जाने क्यों यह प्रस्ताव कागजों में ही दबकर रह गया। जिला बनाने की मांग पर अतीत में कई बार आंदोलन भी हो चुके हैं। आगरा मुख्यालय से दूरी के कारण बाह तहसील में अफसर भी नहीं बैठते और लोगों के काम अटके रहते हैं। यह इस बार का चुनावी मुद्दा भी है बटेश्वर का।

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

बिन लाठी बुढ़ापा

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ वृद्धाश्रम में रह रहे निराश्रितों को नहीं
अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने भी नहीं की खामियां दूर कराने की पहल
आयुष्मान भारत यानी प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना इस बार चुनावी मुद्दा जरूर है, लेकिन इस पर स्वस्थ बहस नहीं हो रही। एक पक्ष जहां इस योजना को बड़े जोर शोर से प्रचारित कर रहा है वहीं दूसरा पक्ष इसे महज बयानों से झुठलाने का कोशिश कर रहा है। इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि अब तक देशभर में 18,35,237 लोगों को इसका लाभ मिल चुका है। लेकिन, हकीकत यह है कि योजना का लाभ उस गति से नहीं मिल पा रहा जैसे मिलना चाहिए। न ही इसमें सर्वाधिक जरूरतमंदों को अब तक शामिल किया जा सका है। योजना की खामियों और सुधार की गुंजाइश पर रोशनी डाल रहे हैं-अजय शुक्ला

बुजुर्ग मुकेश भाटिया की कहानी किसी भी संवेदनशील इंसान को अंदर तक झिंझोड़ जाएगी। मुकेश मार्केटिंग के विशेषज्ञ हैं। एश्ले युनिवर्सिटी से डॉक्टरेट हासिल करने के बाद उन्होंने इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट ऑफ इंडिया (आइसीएफएआइ) में अध्यापन किया। इस दौरान उन्होंने मार्केटिंग से संबंधित दर्जन भर किताबें लिखीं जो सिर्फ आइसीएफएआइ ही नहीं आइआइएलएम व दूसरे संस्थानों के सिलेबस का हिस्सा बनीं। नौकरी की मजबूरी और दुर्भाग्य उन्हें दिल्ली-गुडग़ांव से आगरा ले आया। यहां वह पच्ी नीलम भाटिया के साथ किराये का मकान लेकर रह रहे थे। इसी दौरान उन्हें चिकनगुनिया हो गया। गंभीर बीमारी ने उनकी सारी जमा पूंजी इलाज में खर्च करा दी। नौकरी भी जाती रही। पाई-पाई को मोहताजगी हो गई। शरीर भी काम करने लायक नहीं रहा। कुछ समय ट्यूशन पढ़ाकर गुजारा किया लेकिन नाकाफी रहा।
पत्नी के आग्रह पर मुकेश ने एक दिन सहायता के लिए दिल्ली के राजौरी गार्डेन में रहने वाले बेटे-बहू को फोन किया तो उन्होंने पहचानने से ही इन्कार कर दिया। मकान, फंड का पैसा पहले ही वह बेटे को दे चुके थे। अब उनके पास सिर्फ घरेलू इस्तेमाल के सामान ही बचे थे। मकान मालिक का दो माह का किराया (12 हजार) बकाया हो गया। एक रोज मकान मालिक ने पुलिस बुलाई और पुलिस ने पत्नी से जबरन अंडरटेकिंग लिखाकर घर से बाहर निकलवा दिया। मकान मालिक ने सारा सामान जब्त कर लिया। अब पति-पत्नी रामलाल वृद्धाश्रम में रहते हैं। वृद्धाश्रम में समाजसेवी चिकित्सक उनका इलाज करते हैं, लेकिन दवा के खर्च की फिर भी दिक्कत है। शुक्र है कि हाउसवाइफ बेटी किसी तरह बचत से निकालकर दवा के पैसे उनके एकाउंट में डलवा देती है।
मुकेश जैसे लोगों के लिए ही आयुष्मान भारत (अब प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) में पांच लाख रुपये तक के कैशलेस इलाज की सुविधा है। देशभर में अब तक लाखों लोग इस योजना का लाभ ले चुके हैं, लेकिन योजना की चंद खामियां और इन्हें दूर करने में सरकारी संवेदनहीनता के कारण पीएम की यह पहल मुकेश जैसे वास्तविक जरूरतमंदों के लिए बेमानी हो गई। वृद्धाश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा कहते हैं कि उनके आश्रम में 110 वृद्ध पुरुष और और 103 वृद्ध महिलाएं रह रही हैं। इनका या तो कोई है नहीं या अपनों ने इन्हें पराया किया हुआ है। किसी को जन आरोग्य योजना का लाभ हासिल नहीं है। कई बार प्रयास किये लेकिन योजना के लाभ के मानक में खरा न उतरने के कारण लाभ नहीं मिल सका। शर्मा कहते हैं कि मानक ऐसे भी नहीं जिन्हें बदला न जा सके लेकिन यह भार उठाने को न तो कोई अफसर तैयार है और न जनप्रतिनिधि ही इस पर गौर करना चाहते हैं। नतीजा, आगरा ही नहीं लगभग हर जिले के वृद्धाश्रमों में मौजूद इन वास्तविक जरूरतमंदों को न तो इस योजना का लाभ मिल रहा, न अन्य योजनाओं का। जबकि सारी सरकारी योजनाएं ऐसे ही लोगों को लक्षित कर बनाई जाती हैं।

खामी की जड़ है जनगणना से ली गई सूची
योजना की सबसे बड़ी खामी इसकी आधार सूची है। दरअसल, जिन लोगों का नाम सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना सूची 2011 (एसईसीसी 2011) में शामिल है केवल वे ही इस योजना का लाभ पा सकते हैं। पीएमजेएवाइ की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इस सूची में देश के 10 करोड़ 74 लाख परिवार शामिल हैं। अनुमान के अनुसार इन परिवारों की सदस्य संख्या के आधार पर करीब 50 करोड़ की आबादी को आच्छादित मान लिया गया। खामी की जड़ यहीं है। पिछली जनगणना के समय जब यह सूची बनी तो इसे लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां थी। सूची क्यों बनाई जा रही? यह स्पष्ट न होने के कारण लोगों ने सही जानकारी छिपा ली। सूची बनाने वालों ने भी तमाम परिवारों के फर्जी आंकड़े शामिल कर लिये। हाल ही में सामने आया था कि समाजवादी पार्टी से भाजपा में गए एक राष्ट्रीय नेता व उनके परिवार के सदस्यों का नाम भी इस सूची शामिल था। यानी सूची जन आरोग्य योजना के लिहाज से तैयार ही नहीं की गई थी। दूसरी सबसे बड़ी खामी है कि इस सूची में बदलाव की कोई व्यवस्था नहीं है। तीसरी खामी यह कि इस योजना के तहत गोल्डेन कार्ड (जो कि इसी सूची के आधार पर आयुष मित्र बनाते हैं) बनवाना आसान नहीं। एक तो आयुष मित्रों की पर्याप्त संख्या नहीं, दूसरे नेट कनेक्टिविटी की समस्या और तीसरे आधार कार्ड व राशन कार्ड की अनिवार्यता। सभी के पास यह दस्तावेज उपलब्ध नहीं। वृद्धाश्रमों के अंत:वासियों, भिखारियों, प्रवासी शहरी गरीबों आदि के पास यह दस्तावेज नहीं मिलते। आगरा के मुख्य चिकित्साधिकारी मुकेश वत्स स्वीकार करते हैं कि इन्हें लाभ मिलना चाहिए। बल्कि, 70 वर्ष से अधिक उम्र के सभी बुजुर्गों को इसका लाभ दिया जाना चाहिए लेकिन फिलहाल यह संभव नहीं है। प्रयास चल रहे हैं। हाल ही में आगरा में ऐसे लोगों का सर्वे कराया गया। करीब 10-12 हजार लोग सर्वे में जरूरतमंद पाये गए। किंतु, इनका नाम नहीं जुड़ पाया। अब चुनाव बाद इसके लिए फिर प्रयास किये जाएंगे। कासगंज स्थित वृद्धा आश्रम की अधीक्षिका नीरज सरोज भी मानती हैं कि बीमार वृद्धों को इसका लाभ मिलना चाहिए। एटा के वृद्धाश्रम की वार्डन निशा सूर्या भी निराश्रित बुजुर्गों को इसका लाभ दिलाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन सफलता दूर की कौड़ी है।

योजना एक नजर में :
-पंजीकृत हॉस्पिटल : 15291
-अब तक लाभ पाने : 18,35,237
-गोल्डेन कार्ड धारक : 2,89,63,698
-पात्र परिवार : 10,74,00,000
-पात्र व्यक्ति : 50,00,00,000

(पीएमजेएवाइ की आधिकारिक वेबसाइट के अद्यतन राष्ट्रीय आंकड़े)

अटल बिना इलेक्‍शन

जिला बने तो ' अटल Ó हों स्मृतियां बटेश्वर की व्यथा : - भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष के बिना होगा पहला चुनाव - पूरी ब्रजभूमि में घुली ...