गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

मि पीएम की टीवी कांफ्रेंस की दो बातें :
अजय शुक्‍ला
मिस्‍टर पीएम की टीवी कांफ्रेंस में कही गई दो बातें मुझे बेहद आशामयी लगीं। एक किसी पीएम ने तो सही पद पर रहते हुए खुले मन से स्‍वीकार किया कि उससे गलती हुई है। नैतिक जिम्‍मेदारी भी ली। राजनीति में इसका अभाव हो गया है, यह सभी जानते हैं पर यह अभाव इससे तनिक कम हो गया है। हालांकि, पीएम ने अपनी गलती बिन्‍दुवार नहीं गिनाई और न ही नैतिक जिम्‍मेदारी का स्‍तर समझाया। मुझे एक आम आदमी होने के नाते आम समझ से जो नजर आता है वह यह गलती घोटालों की गंभीरता को समय से न सूंघ पाने और महंगाई की पीर को देरी से समझने की हो सकती है। दूसरी आशा किसी भी ओहदे पर बैठे दोषी को न बख्‍शने और इस्‍तीफा देने के बजाय डटे रहकर अधूरा काम पूरा करने के वादे से जगती है। अशोक चौहान, कलमाणी, राजा के साथ हाल के दिनों में जो सुलूक हुआ उससे इस वादे से उम्‍मीद की किरण फूटती नजर आती है। हमने पिछले दो दशकों की राजनीति से सीखा है कि शीर्ष राजनेताओं का चलन अधीनस्‍थ कमांडरों की पोल खुलने पर वह उन्‍हें जांच में उलझाकर या राजनीतिक सौदेबाजी का औजार बनाकर आखिरी समय तक बचाते रहे हैं। येदियुरप्‍पा, ताजा मिसाल हैं इससे पुरानों की फेहरिश्‍त काफी लम्‍बी है। ऐसा कांग्रेस के राव काल में भी हुआ है। पहला वाकया है, जब इतनी अजीम शख्सियतों की इतनी जल्‍दी सीबीआई दफतर में हाजिरी होने लगी और सलाखों के दर्शन का दौर भी चल रहा है। इसमें सुप्रीम कोर्ट का रोल और टीवी मीडिया के एक वर्ग का दबाव भी है जो जनदबाव जैसा प्रतीत हो रहा है। सीबीआई ही नहीं अन्‍य एजेंसियां भी सक्रिय हैं। वरना, सब जानते हैं कि बहुमत लेकर आये पीएम और सीएम की तानाशाही वाली सरकारों के इस दौर में काले चिट्ठे सरकार के रहते कभी नहीं खुलते।
टीवी कांफ्रेंस में किए अपने वादे को मिस्‍टर पीएम यदि पूरा भी करते हैं तो निश्चित तौर पर वे रिटायरमेंट के पहले न केवल अपनी पुरानी ख्‍याति वापस पा लेंगे बल्कि देश का भी भला होगा।

अटल बिना इलेक्‍शन

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